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चेन्नई4 दिन पहले
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आईफोन मैन्यूफैक्चरिंग पर अभी चीन का दबदबा है। 2024 में कंपनी के ग्लोबल आईफोन शिपमेंट में इसका हिस्सा लगभग 28% था।
भारत में आईफोन बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन से 300 से ज्यादा चीनी इंजीनियर्स और टेक्नीशियंस को अचानक वापस बुलाने पर भारत सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
सरकार ने कहा है कि स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। एपल के पास उत्पादन को प्रभावित किए बिना काम चलाने के लिए पर्याप्त इंजीनियर्स मौजूद है।
PTI की रिपोर्ट के मुताबिक एक सरकारी अधिकारी ने कहा एपल के पास विकल्प हैं और वे इस चुनौती का सामना कर सकते हैं। यह मामला मुख्य रूप से एपल और फॉक्सकॉन के बीच है।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब एपल भारत में आईफोन 17 बनाने की तैयारी कर रहा है। इसका ट्रायल प्रोडक्शन जुलाई में शुरू होने की संभावना है। अगस्त में मास प्रोडक्शन किया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक चीन ने भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को प्रभावित करने के लिए इंजीनियर्स और टेक्नीशियन्स को वापस बुलाने के निर्देश दिए हैं।
भारत में हाई-टेक असेंबली लाइन संभालते हैं चीनी इंजीनियर
चीनी इंजीनियर फॉक्सकॉन की हाई-टेक असेंबली लाइन, फैक्ट्री डिजाइन और भारतीय कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का काम कर रहे थे।
इसके लिए भारत सरकार ने चीनी इंजीनियरों के लिए वीजा सुविधा भी प्रदान की थी, ताकि उत्पादन में कोई बाधा न आए।
चीनी वर्कर्स के जाने से फैक्ट्रियों में काम धीमा हो सकता है
सूत्रों ने कहा, “चाइनीज कर्मचारियों की संख्या 1% से भी कम है, लेकिन ये प्रोडक्शन और क्वालिटी मैनेजमेंट जैसे अहम ऑपरेशंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चीनी सरकार द्वारा अपने नागरिकों को वापस बुलाने के निर्देश से फैक्ट्रियों में काम धीमा हो सकता है।
- बीती दिनों चीन ने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई भी रोक दी थी। ऐसे में चीन के इन दोनों कदमों को भारत की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ को कमजोर करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
- चीन शायद भारत के साथ टिट-फॉर-टैट की रणनीति अपना रहा है, क्योंकि उनके कॉर्पोरेट कर्मचारियों को बिजनेस वीजा हासिल करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। एक उद्योग सूत्र ने कहा, हम इस मामले पर सरकार को एक रिपोर्ट भेजने का प्लान बना रहे हैं।

भारत में फॉक्सकॉन की एक यूनिट की कर्मचारी। सरकार अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है।
आईफोन मैन्यूफैक्चरिंग पर अभी चीन का दबदबा
आईफोन मैन्यूफैक्चरिंग पर अभी चीन का दबदबा है। 2024 में कंपनी के ग्लोबल आईफोन शिपमेंट में इसका हिस्सा लगभग 28% था।
चार साल पहले भारत ने आईफोन असेंबलिंग शुरू की थी
भारत ने 4 साल पहले बड़े पैमाने पर आईफोन असेंबल करना शुरू किया था, और अब ये ग्लोबल प्रोडक्शन का पांचवां हिस्सा बनाता है। एपल की योजना 2026 के अंत तक अमेरिका के लिए ज्यादातर आईफोन्स भारत में बनाने की है, जिसकी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने आलोचना की है।
एपल का भारत पर इतना ज्यादा फोकस क्यों?
- सप्लाई चेन डायवर्सिफिकेशन: एपल चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। जियोपॉलिटिकल टेंशन, ट्रेड डिस्प्यूट और कोविड-19 लॉकडाउन जैसे दिक्कतों से कंपनी को लगा कि किसी एक क्षेत्र में ज्यादा निर्भर रहना ठीक नहीं है। इस लिहाज से एपल के लिए भारत एक कम जोखिम वाला ऑप्शन साबित हो रहा है।
- कॉस्ट एडवांटेज: भारत चीन की तुलना में कम लागत पर लेबर प्रोवाइड करता है, जो इसे इकोनॉमिकली ज्यादा अट्रैक्टिव बनाता है। इसके अलावा, लोकल लेवल पर मैन्यूफैक्चर करने से कंपनी को इलेक्ट्रॉनिक्स पर हाई इंपोर्ट कॉस्ट से बचने में मदद मिलती है।
- गवर्नमेंट इंसेंटिव: भारत की मेक इन इंडिया इनिसिएटिव और PLI स्कीम्स कंपनियों को मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता देती हैं। इन पॉलिसीज ने फॉक्सकॉन और टाटा जैसे एपल के पार्टनर्स को भारत में ज्यादा निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
- बढ़ती बाजार संभावना: भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते स्मार्टफोन मार्केट में से एक है। लोकल प्रोडक्शन से एपल को इस मांग को पूरा करने में ज्यादा मदद मिलती है, साथ ही इसकी बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ जाती है, जो फिलहाल लगभग 6-7% है।
- एक्सपोर्ट के लिए अवसर: एपल इंडिया में बने अपने 70% आईफोन को एक्सपोर्ट करता है, जिससे चीन की तुलना में भारत के कम इंपोर्ट टैरिफ का फायदा मिलता है। 2024 में भारत से आइफोन एक्सपोर्ट 12.8 बिलियन डॉलर (करीब ₹1,09,655 करोड़) तक पहुंच गया। आने वाले समय में इसके और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है।
- स्किल्ड वर्कफोर्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर: भारत का लेबर फोर्स एक्सपीरियंस के मामले में चीन से पीछे है, लेकिन अभी इसमें काफी सुधार हो रहा है। एपल के फॉक्सकॉन जैसे पार्टनर, प्रोडक्शन की जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं और कर्नाटक में 2.7 बिलियन डॉलर (₹23,139 करोड़) के प्लांट जैसे फैसिलिटीज का विस्तार कर रहे हैं।
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